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स्थापना : "सभी शिक्षाओ के अभ्यासों का उद्देश्य मनुष्य निर्माण ही हैं | समस्त अभ्यासों का अंतिम ध्येय मनुष्य का विकास करना है | जिस अभ्यास के द्वारा मनुष्य की इच्छा शक्ति का प्रवाह और अविष्कार संयमित होकर फलदायी बन सके , उसी का नाम शिक्षा है |
स्वामी विवेकानन्द की उक्त अभिप्रेरणा से अद्दभुत 'विद्या भारती ' द्वारा संचालित विधालयों की श्रृंखला में जय नारायण चैरिटेबल ट्रस्ट के अध्यक्ष मा० डा० ईश्वर चन्द्र गुप्त एवं उनके अनुजो के सत्यप्रयासो से कानपुर विकास प्राधिकरण से लखनपुर में 7600 वर्ग मी० का भूखंड क्रय किया गया | इस भूमि पर 18 नवम्बर 1996 में ऋषि माधव राव देवले के कर कमलो द्वारा शिलान्यास होते ही, विद्या मंदिर के भव्य भवन का निर्माण प्रारम्भ हो गया |
उसके एक खण्ड (भूमि तल ) के निर्माण में लगभग दो वर्ष का समय लगा | 4 दिसम्बर 1998 ई० को राष्ट्रीय स्वमसेवक संघ के सर संघ चालकप्रो० राजेन्द्र सिंह (रज्जू भैया ) के कर कमलो द्वारा लोकार्पित, इस भवन में जुलाई 1998 ई० से प्रारम्भ अपना यह जय नारायण विद्या मंदिर शिक्षा जगत के आकाश में ज्योतिर्मान नक्षत्र की भाति अपने जीवन के षोडश ( 1998-2014 ) सुनहरे पृष्ठों को संजोकर सतत विकास की पक्रिया में अग्रसर हैं |
कलेवर : संस्कृत और संस्कृति की पुनुर्स्थापना के स्वपन दृष्ट एवं प्रखर समाज चिन्तक डा० ईश्वर चन्द्र गुप्त जी के पूज्य पिताजी जय नारायण जी की स्मृति में संचालित, यह विद्या मंदिर मात्र 250 छात्रों से प्रारम्भ होकर निरन्तर प्रगति करता हुआ, आज विज्ञान वर्ग एवं वाणिज्य वर्ग में मान्यता प्राप्त पूर्ण विकसित इंटरमिडीएट कॉलेज है | सम्प्रति इस बहुखण्डीय भवन में 30 कक्षा कक्ष, 4 प्रशासनिक कक्ष, 4 प्रयोगशालाये, 2 विशाल सभागार, कला वीथिका , विज्ञान वीथिका, गणित वीथिका, संगीत कक्ष, 22 आवासीय कक्ष, 02 व्याख्यान कक्ष, 01 जिम कक्ष, स्विमिंग पूल, अतिथि कक्ष एवं प्रधानाचार्य भवन भी हैं | ऐसे आधुनिक सुसज्जित भवन में 50 सुयोग्य एवं कर्मठ आचार्यो के मार्गदर्शन में लगभग 1400 अध्ययन कर रहे हैं |
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